कल्प-अश्व असवार
कब निहारे
रूप गौरी का
कब बोले
दो मीठे बोल,
फुर्सत नहीं फसल से उसको
स्वप्न-दृष्टि मौन-अबोल ।
आंखों में बसता केवल
फसल का पसराव,
शादी-न्यौता
पक्की साळ
चक्षु-मार्ग यही बिखराव ।
गौरी चाहे प्रियतम का संग
आंखें उसकी कहती सब
कुछ मुंह से कब बोले,
भरी जवानी
रूप-सौंदर्य
दब गया फसल के नीचे
बंद दरवाजा कौन खोले ।
कब उबरेगा
फसल स्वप्न से सांई मेरा,
कब देखेगा
प्यार नजर से सांई मेरा ।
दोनों संगी इन्तजार में
कोई फसल पकने के,
कोई फसल कटने के/
कोई कर्ज छंटने के,
कोई दर्द बंटने के ।
रूप फसल निकलना चाहे
बंद दरवाजे पार,
दोनों ही दौङते जाते
कल्प-अश्व असवार ।
bhut hi sundar abhivyakti..uttam.
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