कबूतर-सी मठौठ, हिरणी-सी चपलता, खरगोश की कूद-सा संवेदन, मुर्गे-सी जाग, भोर-सा मतवालापन, चिड़िया-सी चहक, कोयल-सी कुहुक, कौए-सी कर्कशता, उल्लू-सी मांगलिकता, बटेर-सी उड़ान, की तरह साधूं शब्द को, रचूं जीवन को, महकाऊं वक्त को, सरसाऊं सामाजिक सरोकारों को। काश ! ऐसा कुछ सिरज सकूं, यही चाहत है ।
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