बसंतोत्सव की हार्दिक मंगल कामनाएं !
बालू से तपते दिलों में
आओ साथी फिर जगायें
सोया मन विश्वास,
विद्रूप से बीझे मनों में
लायें बासंती मधुमास ।
ऐसा कोई जतन करें
नाचे मन ज्यों मोर,
गाल गुलाबों से खिले
चाहत चांद चकौर ।
फिर तलाशें नई ऋचाएं
नव जीवन आकाश,
गढें नई जीवन परिभाषाएं
जागे मन में सांस ।
आओ ऐसा जतन करें
गूंजे गीत ज्यों कोयल कूके,
मन उम्मीदें दौडे हरिण-सी
वक्त गुजरे ज्यों हवा छू के ।
आओ ढूंढें मन हरियाली
दफन करें संत्रास,
मन-पियानों संग बजायें
धक-धक दिल आभास ।
आओ ऐसा जतन करें
फैले मेंहदी, चंपा, रानी
खुशियों की गुलाल उडायें
संग प्यार के पानी ।
इस बसंत की हर सुबह
भरे नया उल्लास,
बालू से तपते दिलों में
फैले बासंती हास ।
तितली फुदके, भौंरे गाये
गूंजे राग मल्हार,
बीन संग लहराती नागिनें
दुःख नाव ज्यों सुख पतवार ।
आओ साथी फिर सजायें
बिखरी खुशियों की घास,
पीड-जूझ के नमदे पर
उगेगा एक नया विश्वास ।
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aap to har vidha mein likhte hain.basant ki bahut sunder kavita hai badhai.
जवाब देंहटाएंbahut gahree baat likhi hai. badhaai.
जवाब देंहटाएंwww.maniknaa.blogspot.com