कब निहारे
रूप गौरी का
कब बोले
दो मीठे बोल,
फुर्सत नहीं
फसल से उसको
स्वप्न-द्रस्ति
मौन अबोल !
आँखों में
बसता केवल
फसल का
पसराव, शादी-न्यौता
पक्की साल
चक्षु-मार्ग
यही बिखराव !
गौरी चाहे
प्रियतम का संग
आँखें उसकी कहती सब कुछ
मुंह से कब बोले,
भरी जवानी
रूप-सौन्दर्य
दब गया फसल के नीचे
बंद दरवाजा कौन खोले !
कब उबरेगा
फसल स्वप्न से
सांई मेरा,
कब देखेगा
प्यार नजर से साँई मेरा !
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