बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

चेहरों के बाजार में  


चेहरों से
 पूता चेहरा
 रिमोट रूपया राम ,
 लोक हाट के
 हाथ है रंगत
 भज लो उसका नाम !
 मान चालीसा
 तुलसी रचता
 छुटभैये आँख दिखाते,
 तानसेन है 
मौन कौने में 
ऐरे-गिरे गाते
 थार की मझधार
 दिखाते 
समदर का विस्राम ...
 कालगर्ल 
अब रंग जमाती 
`मांड` हुआ बेनूर, 
पौधे तरसे
 पानी को अब
 गुलदस्ते भरपूर
 मूल्यों के 
दाता टकराते 
अब राजनीति के जाम ...
 शेर-बकरियां 
एक घाट अब
 पदासीन नाटक,
 भक्सक ही
 रक्सक बन बैठा
 ढूंढो चेहरों का चातक
 भरो पहेली
 कैसे आये
 चेहरों को आराम...!

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

kavita

कब निहारे 
रूप गौरी का
कब बोले
दो मीठे बोल,
फुर्सत नहीं
फसल से उसको
स्वप्न-द्रस्ति
मौन अबोल !
आँखों में
 बसता केवल
 फसल का
 पसराव, शादी-न्यौता
 पक्की साल
चक्षु-मार्ग
यही बिखराव !
गौरी चाहे
प्रियतम का संग
 आँखें उसकी कहती सब कुछ
 मुंह से कब बोले,
भरी जवानी
 रूप-सौन्दर्य
 दब गया फसल के नीचे
 बंद दरवाजा कौन खोले !
 कब उबरेगा
 फसल स्वप्न से
सांई मेरा,
कब देखेगा
प्यार नजर से साँई मेरा !

जगजाहिर