मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

kavita

कब निहारे 
रूप गौरी का
कब बोले
दो मीठे बोल,
फुर्सत नहीं
फसल से उसको
स्वप्न-द्रस्ति
मौन अबोल !
आँखों में
 बसता केवल
 फसल का
 पसराव, शादी-न्यौता
 पक्की साल
चक्षु-मार्ग
यही बिखराव !
गौरी चाहे
प्रियतम का संग
 आँखें उसकी कहती सब कुछ
 मुंह से कब बोले,
भरी जवानी
 रूप-सौन्दर्य
 दब गया फसल के नीचे
 बंद दरवाजा कौन खोले !
 कब उबरेगा
 फसल स्वप्न से
सांई मेरा,
कब देखेगा
प्यार नजर से साँई मेरा !

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