बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

चेहरों के बाजार में  


चेहरों से
 पूता चेहरा
 रिमोट रूपया राम ,
 लोक हाट के
 हाथ है रंगत
 भज लो उसका नाम !
 मान चालीसा
 तुलसी रचता
 छुटभैये आँख दिखाते,
 तानसेन है 
मौन कौने में 
ऐरे-गिरे गाते
 थार की मझधार
 दिखाते 
समदर का विस्राम ...
 कालगर्ल 
अब रंग जमाती 
`मांड` हुआ बेनूर, 
पौधे तरसे
 पानी को अब
 गुलदस्ते भरपूर
 मूल्यों के 
दाता टकराते 
अब राजनीति के जाम ...
 शेर-बकरियां 
एक घाट अब
 पदासीन नाटक,
 भक्सक ही
 रक्सक बन बैठा
 ढूंढो चेहरों का चातक
 भरो पहेली
 कैसे आये
 चेहरों को आराम...!

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